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हमेशा रहना है फिट तो मौसम के हिसाब से बदलते रहिये अपनी लाइफस्टाइल

हमेशा रहना है फिट तो मौसम के हिसाब से बदलते रहिये अपनी लाइफस्टाइल

 


Ayurveda Lifestyle: दिल्ली में पूर्णचंद्र गुप्त स्मारक ट्रस्ट और आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रीय आरोग्य मेले में आयुर्वेद सिद्ध यूनानी होम्योपैथ जैसी पारंपरिक उपचार विधाओं के विशेषज्ञों ने संपूर्ण सेहत एवं खुशहाल जीवन के कुछ ऐसे सूत्र बताए जिनके जरिए हम स्वस्थ जीवन का आधार तैयार कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि आयुर्वेद सिद्ध और होम्योपैथी विशेषज्ञों की क्या और कौन सी सलाह हमारे लिए उपयोगी है। 



दिनचर्या ही नहीं ऋतुओं के साथ भी आरोग्य का गहन संबंध है। हमें प्रतिदिन के साथ-साथ ऋतुओं के अनुसार भी रहन-सहन, खानपान और दिनचर्या को अपनाने की जरूरत है। आयुर्वेद में इन बात का विशेष महत्व है। उदाहरण के तौर पर हम इस मौसम यानी सर्दी के मौसम की बात करें तो यह उपवास करने और वजन कम करने के लिए सबसे उत्तम समय है। अगर इस मौसम में शरीर से गंदे और विषाक्त पदार्थों को नहीं निकालते हैं तो खांसी, जुकाम, एलर्जी से जुड़ी बीमारियों के होने की प्रबल आशंका रहती है।



हाल में दिल्ली में पूर्णचंद्र गुप्त स्मारक ट्रस्ट और आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रीय आरोग्य मेले में आयुर्वेद सिद्ध यूनानी होम्योपैथ जैसी पारंपरिक उपचार विधाओं के विशेषज्ञों ने संपूर्ण सेहत और खुशहाल जीवन के कुछ ऐसे सूत्र बताए जिनके जरिए हम स्वस्थ जीवन का आधार तैयार कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि आयुर्वेद सिद्ध और होम्योपैथी विशेषज्ञों की क्या और कौन सी सलाह हमारे लिए उपयोगी है

कुछ प्रमुख नियमों का रखें ध्यान 

प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में जागने का प्रयास करें। यदि इस समय नहीं उठ पा रहे हों तो प्रयास करें कि सूर्योदय से पहले उठ जाएं। सुबह जागने के बाद अपने हर अंग पर विचार करें। ध्यान करें कि शरीर के किस अंग में कहां कैसी कठिनाई आ रही है। चिंतन करें। उठने में जल्दबाजी न करें। व्यायाम ऐसा करें कि उसमें शरीर की कुल क्षमता की आधी ऊर्जा लगे। यदि आप एक किमी. टहलने में थक जाते हैं, तो एक किलोमीटर ही चलें। 

गरम पानी से कुल्ला नियमित करें। इस मौसम में गर्म पानी का सेवन लाभदायक है। अभ्यांग यानी तेल मालिश करने से रक्तसंचार बढ़ेगा और मन को भी आराम मिलेगा। आयुर्वेद के अनुसार, भोजन में छह रस का संतुलन होना चाहिए। ये हैं-मधुर (मीठा), लवण (नमकीन), अम्ल (खट्टा), कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) और कषाय (कसैला)। भोजन के समय ध्यान रखें कि पेट के आधे भाग में ठोस भोजन, एक चौथाई में द्रव और एक चौथाई भाग खाली रहे। नींद पर्याप्त नहीं लेने से पाचन क्रिया भी बिगड़ती है। दिन में देर तक सोने और रात में देर तक जागकर काम करने की जीवनशैली शरीर में पित्तदोष बढ़ जाता है। इसे संतुलित रखने का प्रयास करें।