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फर्जी हरिजन एक्ट लिखवाने वालो के लिए बुरी खबर : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने DGP को दिए निर्देश

फर्जी हरिजन एक्ट लिखवाने वालो के लिए बुरी खबर : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने DGP को दिए निर्देश



 प्रयागराज- फर्जी हरिजन एक्ट लिखवाने वालो के लिए बुरी खबर

- जिलों के पुलिस अधिकारियों को आवश्यक सर्कुलर जारी करें

- ⁠धारा 182 IPC, BNS 2023 की धारा 217 पर विचार कर सकें

- ⁠प्रावधानों के आह्वान के संबंध में टिप्पणियों पर विचार कर सकें

- ⁠न्यायालय की टिप्पणियों, SC/ST अधिनियम पर विचार कर सकें

- ⁠HC ने अधिनियम 1989 SC/ST एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई

- ⁠अधिनियम पीड़ितों को राहत प्रदान करने के लिए बनाया गया

- ⁠कुछ व्यक्ति मुआवज़े के लिए एक्ट का दुरुपयोग कर रहे हैं

- ⁠FIR दर्ज करने से पहले शिकायतों की जांच करें

- ⁠जिससे 1989 के कानून के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा

 यह टिप्पणी न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने विहारी और दो अन्य की याचिका स्वीकार करते हुए की और उनके खिलाफ आईपीसी और एससी/एसटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन कैला देवी, संभल में दर्ज प्राथमिकी और आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया। उपरोक्त मामले में पीड़ित ने हाईकोर्ट के समक्ष स्वीकार किया कि उसने ग्रामीणों के दबाव में झूठी प्राथमिकी दर्ज कराई और वह मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहता है। इस पर कोर्ट ने कथित पीड़ित को राज्य सरकार से मुआवजे के रूप में प्राप्त 75 हजार रुपये आरोपी को वापस करने का भी निर्देश दिया।

कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ उपाय बताए, जैसे मामला दर्ज करने से पहले कठोर सत्यापन प्रक्रिया लागू की जानी चाहिए, जिससे शिकायतों की विश्वसनीयता का आकलन किया जा सके। पुलिस अधिकारियों और न्यायिक अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, जिससे उन्हें एक्ट के संभावित दुरुपयोग के संकेतों को पहचानने में मदद मिल सके।

अधिनियम के दुरुपयोग के पैटर्न की जांच करने के लिए समर्पित निरीक्षण निकाय स्थापित किया जाना चाहिए। समुदायों को अधिनियम के उद्देश्य और झूठे दावे दायर करने के परिणामों के बारे में शिक्षित करने के लिए जन जागरूकता अभियान शुरू किए जाने चाहिए। अंत में कोर्ट ने उक्त आदेश की प्रति सभी जिला न्यायालयों को प्रसारित करने का निर्देश दिया, जिससे वे ऐसे मामलों में उचित आदेश पारित कर सकें, साथ ही प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को जिलों के पुलिस अधिकारियों को आवश्यक सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया, जिससे वे कोर्ट द्वारा सुझाए गए उपायों पर आईपीसी की धारा 182 (अब बीएनएस 2023 की धारा 217) के तहत विचार कर सकें।