आधार आयु निर्धारण का वैध दस्तावेज नहीं’, उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-58 को दी गई चुनौती
नई दिल्ली। मुस्लिम को भी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के दायरे में लाने की मांग वाली याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मुस्लिम समुदाय की महिला सफिया पीएम की ओर से दाखिल याचिका में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-58 को चुनौती दी गई है। याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई है कि जन्मजात लेकिन गैर-आस्तिक मुस्लिम के पास मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 के तहत निर्धारित प्राधिकारी से यह घोषणा करने का विकल्प है कि वे अब शरिया कानून द्वारा शासित नहीं हो सकते हैं। साफिया ने कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 या 3 में सूचीबद्ध किसी भी मामले के लिए वह मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं होगी, लेकिन अधिनियम में प्रावधान नहीं है, जिसके तहत प्रमाणपत्र मिल सके। यह कानून में स्पष्ट शून्यता है जिसे न्यायिक व्याख्या से दूर किया जा सकता है। याचिका में मांग की गई है कि इस्लाम छोड़ने और प्राधिकरण से ‘कोई धर्म नहीं, कोई जाति नहीं’ का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद भी, सफिया को अपनी पैतृक संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार देने की मांग की है।
हाईकोर्ट ने उम्र आंकने के लिए आधार कार्ड पर भरोसा किया था
एमएसीटी, रोहतक ने 19.35 लाख रुपये का मुआवजा दिया, जिसे हाईकोर्ट ने घटाकर 9.22 लाख कर दिया, क्योंकि पाया कि एमएसीटी ने मुआवजा निर्धारित करते समय गलत तरीके से आयु गणना की थी। हाईकोर्ट ने मृतक की आयु 47 वर्ष आंकने के लिए उसके आधार कार्ड पर भरोसा किया था।